Shiv Panchakshar Stotra : भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव ही इस सृष्टि की उत्पत्ति, संचालन और संहार के अधिपति देव हैं। भगवान शिव अपने रौद्ररूप और सौम्य रूप दोनों के लिए प्रख्यात हैं। भगवान शिव के रौद्ररूप को शांत करने का तरीका भी शास्त्रों में वर्णित है। दरअसल अगर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में मृत्युतुल्य कष्टों का सामना करना पड़ रहा है तो उसे इस स्तोत्र का पाठ, शिव स्तुति और महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। आज हम आपको यहां शिव पंचाक्षर स्तोत्र, शिव स्तुति और महामृत्युंजय मंत्र क्या होता है? इसके बारे में बता रहे हैं।

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शिव पंचाक्षर स्तोत्र – Shiv Panchakshar Stotra
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै मकाराय नम: शिवाय।।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नम: शिवाय।।
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नम: शिवाय।।
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
इसका पाठ करने के बाद व्यक्ति को याद से शिव स्तुति का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। आइए जानते हैं क्या है शिव स्तुति…
शिव स्तुति पाठ
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।
पंचाक्षर स्तोत्र और शिव स्तुति के पाठ के बाद अगर हो सके तो मृत्युतुल्य कष्ट भोग रहे व्यक्ति को खुद या फिर उसके किसी परिजन को महामृत्युंजय मंत्र का जाप दिन में कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं क्या है महामृत्युंजय मंत्र…
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: । ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ ।।
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